नई दिल्ली :
अल्पसंख्यक समुदाय पर लगातार बढ़ रहे हमलों के बाद बांग्लादेश ‘इस्लाम’ का आधिकारिक धर्म का दर्जा जल्द ही खत्म कर सकता है. अल्पसंख्यक समुदाय के लोग अपने ऊपर हो रहे हमलों के मद्देनजर इसकी जोरशोर से मांग उठा रहे हैं. ईसाई, हिंदुओं और मुस्लिम शिया समुदाय के लोगों पर यहां हमलों की घटनाओं में वृद्धि हुई है. बांग्लादेश के शीर्ष न्यायालय में इन दिनों इस्लाम धर्म को देश के आधिकारिक धर्म से हटाने की मांग की याचिका पर सुनवाई हो रही है. ज्ञात हो कि 1988 के बाद से बांग्लादेश में इस्लाम आधिकारिक धर्म है.
अल्पसंख्यकों पर हमले बढ़ने से चिंतित बांग्लादेश धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बनने की राह पर चल पड़ा है. ऐसे में इस्लाम का आधिकारिक धर्म का दर्जा यहां वापस लिया जा सकता है. इस्लामी आतंकियों के हाल के हमलों में कई बांग्लादेशी ब्लॉगरों तथा प्रमुख हस्तियों की मृत्यु हो चुकी है. हिंदुओं, ईसाइयों तथा शिया अल्पसंख्यकों और उनके धर्मस्थलों पर हमले बेतहाशा बढ़े हैं. 1988 में बांग्लादेश में तत्कालीन सैन्य सरकार ने संविधान में संशोधन करके इस्लाम को आधिकारिक धर्म घोषित किया था. उसी वर्ष देश के 15 प्रमुख लेखकों, पूर्व न्यायाधीशों, शिक्षाविदों तथा संस्कृतिकर्मियों ने इस फैसले के विरोध में याचिका दायर की थी.
हालांकि, इतने लंबे अर्से के दौरान अदालतों में सुनवाई नहीं हुई. हाल के महीनों में अल्पसंख्यकों पर हमले बढ़ने के कारण सुप्रीम कोर्ट ने 29 फरवरी को उस याचिका पर अधिकृत तौर पर सुनवाई शुरू कर दी है. बांग्लादेश 1971 में जब अलग राष्ट्र के रूप में अस्तित्व में आया तब संविधान में उसे धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र का दर्जा दिया गया था. वहां इस समय 90 प्रतिशत जनसंख्या मुस्लिमों की है. आठ प्रतिशत हिंदू तथा दो प्रतिशत अल्पसंख्यक रहते हैं.
अमेरिकी खुफिया विभाग द्वारा बांग्लादेश सरकार को स्पष्ट चेतावनी दी गई थी कि वहां आतंकी संगठन आईएस ने भर्ती शुरू करके अपनी गतिविधियां तेज कर दी हैं. इसके बाद सरकार ने भी माना कि यह समस्या बाहर से नहीं, अंदर से ही पैदा हुई है. सुप्रीम कोर्ट की पहल का अल्पसंख्यकों व बुद्धिजीवियों ने स्वागत किया है. इससे धार्मिक तौर पर अल्पसंख्यकों में नई उम्मीद जगी है.